Today's Question?
How did the churning of the ocean happen, where is such a machine, how did a woman come out of the water
बच्चों के मन में सवाल आएगा
सागर का मंथन कैसे हुआ,, ऐसी मशीन कहां है,,
पानी में से स्त्री कैसे निकली
आपका प्रश्न यथावत है हमारे आज के काल में पढाई या अध्यन की विधि बिलकुल ही बदल चुकी है पूर्णतया आर्थिक स्तोत्रों पे बल दिया जा रहा है और यही कारन है की ज्ञान विद्या और अध्यन्न गुरु शिक्षा पद्धति बदल चुकी है
सागर मंथन कैसे हुआ क्यों हुआ ऐसी मशीन कहा है स्त्री कैसे निकली इनका जवाब हमारे वेदो में निहित है जरुरत है तो उनमे जिज्ञासा और विश्वास के साथ अध्यन करने की
सागर मंथन या समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हिन्दू धर्मपौराणिक कथा है। यह कथा भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण में आती है। में संक्षिप्त में इनके बारे में बताने की कोशिस करूँगा आप इन्हे इस प्रकार समझे
१. भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।[1]
२. महाभारत भारत का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है। इसे भारत भी कहा जाता है। यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं।[1] विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है।[2] यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं[3], जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं।[4][5]
३. विष्णुपुराण अट्ठारह पुराणों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन है। यह श्री पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत है। इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं। इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण, समुद्र, सूर्य आदि का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प-विभाग, सम्पूर्ण धर्म एवं देवर्षि तथा राजर्षियों के चरित्र का विशद वर्णन है।[1] भगवान विष्णु प्रधान होने के बाद भी यह पुराण विष्णु और शिव के अभिन्नता का प्रतिपादक है। विष्णु पुराण में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है।
ये तो मेने बताया की कहा उल्लेख है अब जानो संक्षिप्त कथा
समद्र मंथन की क्षीर सागर मंथन की या फिर अमृत मंथन की
श्री शुकदेव जी बोले, "हे राजन्! राजा बलि के राज्य में दैत्य, राक्षस तथा दानव अति प्रबल हो उठे थे। उन्हें शुक्राचार्य की शक्ति प्राप्त थी। इसी बीच दुर्वासा ऋषि के श्राप से देवराज इन्द्र शक्तिहीन हो गये थे। असुर राज बलि का राज्य तीनों लोकों पर था। इन्द्र सहित देवतागण उससे(असुर) से भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल बैकुण्ठनाथ विष्णु ही बता सकते थे, अतः ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवता भगवान नारायण के पास पहुचे। उनकी स्तुति करके उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी विपदा(समस्या) सुनाई। तब भगवान मधुर वाणी में बोले, कि इस समय तुम लोगों के लिये संकट काल है। दैत्यों, राक्षसों एवं दानवों का अभ्युत्थान हो रहा है और तुम लोगों की अवनति हो रही है,किन्तु संकट काल को मैत्रीपूर्ण भाव से व्यतीत कर देना चाहिये। तुम असुरों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर को मथ कर उसमें से अमृत निकाल कर पान कर लो। असुरों की सहायता से यह कार्य सुगमता से हो जायेगा। इस कार्य के लिये उनकी हर शर्त मान लो और अन्त में अपना काम निकाल लो। अमृत पीकर तुम अमर(कभी न मरने बाला) हो जाओगे और तुममें असुरों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा।
"भगवान(विष्णु) के आदेशानुसार इन्द्र देव ने समुद्र ममन्थन से अमृत निकलने की बात बलि को बताया। असुरराज बलि ने देवराज(देवताओं के राजा) इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। वासुकी के नेत्र से नेतङ(राजपुरोहित) का उद्भव हुआ। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये। भगवान नारायण(विष्णु) ने असुर रूप से असुरों में और देवता रूप से देवताओं में शक्ति का संचार किया। वासुकीनाग(मथनी) को भी गहन निद्रा दे कर उसके कष्ट को हर लिया। देवता वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने लगे। इस पर उल्टी बुद्धि वाले दैत्य, राक्षस, दानवादि ने सोचा कि वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने में अवश्य कुछ न कुछ लाभ होगा। उन्होंने देवताओं से कहा कि हम किसी से शक्ति में कम नहीं हैं, हम मुँह की ओर का स्थान लेंगे।(मथने के लिए) तब देवताओं ने वासुकी नाग के पूँछ की ओर का स्थान ले लिया।
"समुद्र मन्थन आरम्भ हुआ और भगवान कच्छप के एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा। हे राजन! समुद्र मंथन से सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा असुर जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना पर महादेव जी उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस कालकूट विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को नीलकण्ठ कहते हैं। उनकी हथेली से थोड़ा सा विष(जहर) पृथ्वी पर टपक(गिर) गया था जिसे नाग , बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया।
"विष को शंकर भगवान के द्वारा पान(ग्रहण) कर लेने के पश्चात् फिर से समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ।
दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया।
फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे असुरराज बलि ने रख लिया।
उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने अपना वाहन बना लिया।
ऐरावत के पश्चात् कौस्तुभमणि समुद्र से निकली उसे विष्णु भगवान ने रख लिया।
फिर कल्पवृक्ष निकला और रम्भा नामक अप्सरा निकली। इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया।
आगे फिर समु्द्र को मथने से महलक्ष्मी जी निकलीं। महालक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया।
उसके बाद कन्या के रूप में वारुणी प्रकट हई जिसे असुरों ने ग्रहण किया।
फिर एक के पश्चात एक चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत का घट लेकर प्रकट हुये।" धन्वन्तरि के हाथ से अमृत को असुरों ने छीन लिया और उसके लिये आपस में ही लड़ने लगे। देवताओं के पास दुर्वासा के शापवश इतनी शक्ति रही नहीं थी, कि वे असुरों से लड़कर उस अमृत को छीन सकें इसलिये वे निराश खड़े हुये। उनका आपस में लड़ना देखते रहे। देवताओं की निराशा को देखकर भगवान विष्णु तत्काल मोहिनी रूप धारण कर आपस में लड़ते असुरों के पास जा पहुँचे। उस विश्वमोहिनी रूप को देखकर असुरों तथा देवताओं की तो बात ही क्या, स्वयं ब्रह्मज्ञानी, कामदेव को भस्म कर देने वाले, भगवान शंकर भी मोहित होकर उनकी ओर बार-बार देखने लगे। जब असुरों ने उस नवयौवना सुन्दरी को अपनी ओर आते हुये देखा तब वे अपना सारा झगड़ा भूल कर उसी सुन्दरी की ओर कामासक्त(मोहित) होकर एकटक देखने लगे।
वे असुर बोले, "हे सुन्दरी! तुम कौन हो? लगता है कि हमारे झगड़े को देखकर उसका निबटारा करने के लिये ही हम पर कृपा कटाक्ष कर रही हो। आओ शुभगे! तुम्हारा स्वागत है। हमें अपने सुन्दर कर कमलों से यह अमृतपान कराओ।" इस पर विश्वमोहिनी रूपी विष्णु ने कहा, "हे देवताओं और असुरों! आप दोनों ही महर्षि कश्यप जी के पुत्र होने के कारण भाई-भाई हो फिर भी परस्पर लड़ते हो। मैं तो स्वेच्छाचारिणी स्त्री हूँ। बुद्धिमान लोग ऐसी स्त्री पर कभी विश्वास नहीं करते, फिर तुम लोग कैसे मुझ पर विश्वास कर रहे हो? अच्छा यही है, कि स्वयं सब मिल कर अमृतपान कर लो।"
विश्वमोहिनी(विष्णु रूप) के ऐसे नीति कुशल वचन सुन कर उन कामान्ध दैत्यो, दानवों और राक्षसों को उस पर और भी विश्वास हो गया। वे बोले, "सुन्दरी! हम तुम पर पूर्ण विश्वास है। तुम जिस प्रकार बाँटोगी हम उसी प्रकार अमृतपान कर लेंगे। तुम ये घट ले लो और हम सभी में अमृत वितरण करो।" विश्वमोहिनी ने अमृत घट लेकर देवताओं और असुरों को अलग-अलग पंक्तियो में बैठने के लिये कहा। उसके बाद असुरों को अपने कटाक्ष से मदहोश करते हुये देवताओं को अमृतपान कराने लगे। असुर उनके कटाक्ष से ऐसे मदहोश हुये कि अमृत पीना ही भूल गये।
भगवान की इस चाल को स्वरभानु नामक दानव समझ गया। वह देवता का रूप बना कर देवताओं में जाकर बैठ गया और प्राप्त अमृत को मुख में डाल लिया। जब अमृत उसके कण्ठ में पहुँच गया तब चन्द्रमा तथा सूर्य ने पुकार कर कहा कि ये स्वरभानु दानव है। यह सुनकर भगवान विष्णु ने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर गर्दन से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से उसके सिर और धड़ राहु और केतु नाम के दो ग्रह बन कर अन्तरिक्ष में स्थापित हो गये। वे ही बैर भाव के कारण सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण कराते हैं।
इस तरह देवताओं को अमृत पिलाकर भगवान विष्णु वहाँ से लोप(गायब) हो गये। उनके लोप होते ही असुरों की मदहोशी समाप्त हो गई। वे अत्यन्त क्रोधित हो देवताओं पर प्रहार करने लगे। भयंकर देवासुर संग्राम आरम्भ हो गया, जिसमें देवराज इन्द्र ने असुरराज बलि को परास्त कर अपना इन्द्रलोक वापस ले लिया।
उपरोक्त कथा संक्षिप्त में है आप इन्हे दिए गए ग्रंथो में पढ़े और बचो को बताये जेसे हवा में विमान उड़ाना 1903 से पहले असंभव था इंवेंट नहीं हुआ था लेकिन आज उडता है उसी प्रकार समुद्र में मंथन की मशीन बनायीं गयी थी इसके 3 भाग थे मथानी रस्सी आधार और जैसे दूध को जमा के दही और दही से घी छाछ आदि मथने के बाद ही बनता है जो एक प्रकार का अमृत ही है
उसी प्रकार क्षीर सागर दूध के सागर को भी माथा गया था और वह से उपरोक्त रत्न प्राप्त हुए थे आज भी रत्न समुद्र में ही पाए जाते है जैसे शंख पुखराज सिप मूंगा आदि
आप शिक्षक है और आज तो डिजिटल युग है सभी अध्यन हेतु सामग्री डिजिटल उपलब्ध है में आशा करता हु आप बचो की जिज्ञासा को पूरा करेंगे मेने कोशिश की है आप भी करे
कुछ फोटोज शेयर कर रहा हु वो भी देखे
देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन रस्सी का काम शेषनाग के छोटे भाई वासुकी करते हुए और नीचे अपने कवच पर मदरांचल पर्वत रखे हुए कुर्म रूपी विष्णु
ये एयरपोर्ट पे लगी प्रतिमाओं की है , सुवर्णभूमि अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, बैंगकॉक में सागर मन्थन की एक प्रतिमा के दो तरफ़ से चित्र
Your question remains the same. In our present times, the method of study has completely changed. Emphasis is being laid on economic sources and this is the reason that the knowledge, learning and study system of the Guru has changed.
How did the churning of the ocean happen, why did it happen, where is such a machine, how did a woman come out, the answers to these are contained in our Vedas. If necessary, study them with curiosity and faith.
Sagar Manthan or Samudra Manthan is a famous Hindu religious mythological story. This story comes in Bhagwat Purana, Mahabharata and Vishnu Purana. I will try to tell about them in brief. You should understand them in this way.
1. Bhagwat Purana is one of the eighteen Puranas of Hindus. It is also called Shrimad Bhagwatam or simply Bhagwatam. Its main subject is Bhakti Yoga, in which Krishna is depicted as the God of all Gods or God himself. Apart from this, the devotion of Rasa Bhaav has also been described in this Purana. Traditionally, Ved Vyas is considered to be the author of this Purana. Shrimad Bhagwat is the crown jewel of Indian literature. The path of devotion narrated by Lord Shukdev to Maharaj Parikshit is like a step. There is the fragrance of Shri Krishna's love in each of its verses. It has a wonderful collection of various inspiring anecdotes along with the coordination of Sadhan-Gyan, Siddhgyan, Sadhan-Bhakti, Siddha-Bhakti, Maryada-Marg, Anugraha-Marg, Dvaita, Advaita. [1]
2. Mahabharata is a major poetic text of India, which comes in the history category of Smriti. It is also called Bharat. This poetic text is a unique religious, mythological, historical and philosophical text of India. [1] This longest literary text and epic of the world is one of the main texts of Hinduism. This book is considered the fifth Veda in Hinduism.[2] Although it is considered one of the most unique works of literature, even today this book is an exemplary source for every Indian. This work is a saga of the history of ancient India. The holiest book of Hinduism, Bhagavad Gita, is contained in it. The entire Mahabharata has about 1,10,000 verses[3], which is ten times more in size than the Greek poems Iliad and Odyssey.[4][5]
3. Vishnupuran is the most important and ancient of the eighteen Puranas. It is written by Shri Parashar Rishi. Its subject is Lord Vishnu, who is the root cause of the universe, eternal, inexhaustible, indestructible and constant. In this Purana, there is a detailed description of the size of elements like sky, size of sea, sun etc., origin of mountains, gods etc., Manvantara, division of Kalpa, complete religion and the character of Devarshi and Rajarshi. [1] Despite Lord Vishnu being the main Purana, this Purana advocates the inseparability of Vishnu and Shiva. Vishnu Purana mainly describes the character of Lord Krishna, although there is a brief mention of Ram Katha as well.
I have told you where it is mentioned, now know the brief story of Samudra Manthan, Ksheer Sagar Manthan or Amrit Manthan. Shri Shukdev Ji said, "O King! In the kingdom of King Bali, demons, monsters and devils had become very powerful. They had the power of Shukracharya. Meanwhile, due to the curse of Durvasa Rishi, Devraj Indra had become powerless. Asura King Bali ruled over all the three worlds. Indra and other gods were afraid of him (asuras). Only Vaikunthanath Vishnu could tell the solution to this situation, so all the gods along with Brahma Ji went to Lord Narayan. After praising him, they told their problems to Lord Vishnu. Then the Lord said in a sweet voice, that this is a time of crisis for you people. Demons, monsters and devils are rising and you people are declining, but this time of crisis should be spent in a friendly manner. You demons Make friendship with them and churn the Ksheer Sagar and extract Amrit from it and drink it. With the help of Asuras this task will be done easily. For this task accept all their conditions and finally get your work done. By drinking Amrit you will become immortal (never dying) and you will get the power to kill Asuras.
"As per the order of God (Vishnu), Indra Dev told Bali about the nectar coming out of churning of ocean. Asuraraj Bali made a compromise with Devraj (King of Gods) Indra and got ready for churning of ocean. Mount Mandaraachal was made the churning rod and Vasuki Naag was made the rope. Netang (Rajpurohit) was born from the eye of Vasuki. Lord Shri Vishnu himself took the form of a tortoise and became the base of Mandaraachal mountain by placing it on his back. Lord Narayan (Vishnu) infused power in demons in the form of demons and in gods in the form of gods. He also relieved Vasuki Naag (churning rod) of its pain by putting it into deep sleep. Gods started holding Vasuki Naag from the mouth side. On this, demons, monsters, demons etc. with wrong thinking thought that there will definitely be some benefit in holding Vasuki Naag from the mouth side. They told the gods that we are not less powerful than anyone, we will take the place of the mouth side. (For churning) Then the gods took position towards the tail of Vasuki Naag.
"The churning of the ocean began and Mandarachal mountain started rotating on the one lakh yojana wide back of Lord Kachhapa. O King! The first thing that came out of the churning of the ocean was the poison Halahal. All the gods and demons started burning with the flames of that poison and their radiance started fading. On this, everyone prayed to Lord Shankar. On their prayer, Mahadev Ji
References:
https://en.wikipedia.org/wiki/Vishnu_Purana